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मत डालो पानी..उलटे घड़े पर!

prawahit pushp!
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मत डालो पानी..उलटे घड़े पर!

“यकीनन किस्मत ही खराब है मेरी…
भगवान भी शायद सुनता नहीं है मेरी…
कितनी मेहनत की मैंने….
क्या मिला फल मुझे…
जवानी गुजर गई मेरी….
इस कुँए से पानी निकालकर…
घड़ा भरने की कोशिश कर रहा हूँ मैं…
रस्सी भी अब घीस घीस कर…
हो गई है कमजोर….
हाथ भी मेरे घीस घीस कर…
हो गए है कमजोर…”

“कई आए मेरे बाद भी…
घड़े पानी से भरकर…
अपनी प्यास बुझा कर…
घड़े भरे हुए निर्मल जल से…
उठा कर हँसतें हुए…
चले गए अपनी राह…
पर मैं रह गया…
प्यासा का प्यासा…
मेरा घड़ा तो ऐ परमात्मा!
..अब तक ना भर पाया…”

कि भगवान आए अचानक…
एक जटाधारी साधु के भेष में…
और कहकहा लगाया पूर जोश में…
फिर थोड़ा पास आए….बोले…

“ऐ…घड़े वाले वीर पुरुष!
इतने एकाग्र चित्त हो कर…
कौन सा कर रहा है काम?
समय की सुध भी नहीं है तुझे ……
तेरे जीवन की हो चली है शाम!”

बोला…घड़े वाला वीर पुरुष….
” चाहता हूँ…बाबा!
घड़ा भर जाए तो….
पी..लू..थोडासा पानी…
बचा हुआ ले जाऊं अपने घर…
पर ना भरता है घड़ा …
न मिलता है पानी…
जीवन झोंक दिया मैंने…
करता रहा मेहनत दिन रात…
अब आ गया बुढापा…
हाय रे!..बीत गई जवानी..”

बोले जटाधारी “सुन ऐ वीर पुरुष!
मेहनत भी करो, तो करो अकलमंदी से…
वरना कुछ हासिल ना होने पर…
शिकायत करते रह जाओगे…
किस्मत से..या फिर भगवान से…”

“अरे वीर पुरुष! ….
जरासा भी ध्यान दिया होता…
अब तक प्यास बुझा कर…
घड़ा पानी से लबालब भर कर…
तू यहाँ से दूर निकल गया होता…
अरे!..जब जब तूं कुँए से,
पानी से भरी बाल्टी निकाल कर,
उडेलता है घड़े में पानी…
आँखे क्या बंद है तेरी?
ऐ मूर्ख!…क्या नहीं जानता तूं?…
उलटे घड़े पर डाल रहा है तूं पानी?
अकल से काम लिया होता तो…
मेहनत तेरी रंग लाती…
ना बुढापा खराब हुआ होता…
ना जवानी तेरी रोती!”

अब सिर उठा कर देखा…
घड़े वाले वीर पुरुष ने…
वह उलटे घड़े पर डाल रहा था पानी…
न जटाधारी साधु था वहाँ पर,
..और बहे जा रहा था पानी!

ऐसा ही होता है…
बहुतों के जीवनी का सार…
मेहनत तो वे बहुत करते है….
लेकिन ध्यान न देनेसे…
मेहनत हो जाती है बेकार…
मेहनत अगर करो..अकलमंदी से करो…
अगर पानी से भरना है खाली घड़ा…
पहले उसे सीधा तो करो!

-डॉ.अरुणा कपूर.

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