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ईश्वर भक्ति किसी स्वार्थ वश न करें!

prawahit pushp!
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ईश्वर भक्ति किसी स्वार्थ वश न करें!

समाज में यही विचार दृढ भाव से प्रचलित है कि ईश्वर को उसकी भक्ति द्वारा ही प्रसन्न किया जा सकता है! भक्ति के लिए अनेक जरिए या रास्तें अपनाएं जाते है! व्रत और उपवास द्वारा भी ईश्वर भक्ति की जा सकती है…धार्मिक स्थलों की यात्रा द्वारा भी ईश्वर भक्ति की जा सकती है…हर रोज अपने इष्ट देवता के मंदिर जा कर दर्शन करने की विधि भी ईश्वर भक्ति ही कहलाती है!…घर में मंदिर की स्थापना कर के इष्टदेव की मूर्ती के समक्ष घी का दीया जला कर, किसी स्तोत्र का पाठ करके भी भक्ति की जा सकती है!…यह सब इष्ट देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है…इष्ट देव प्रसन्न होने पर जीवन में सुख समृद्धि और इच्छाओं की पूर्ति हो ही जाती है…यह मान्यता हमारे समाज में प्रचलित है!

…लेकिन क्या यह सब ईश्वर भक्ति के उपाय, ईश्वर को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है ? कुछ लोगों को ईश्वर भक्ति से इच्छित फल मिल जाता है..तो कुछ इससे वंचित रह जाते है!..कुछ लोगों को ईश्वर भक्ति असाधारण रूप से करतें हुए भी देखा है…उनकी भी सभी इच्छाओं की पूर्ति कहाँ होती है? …ऐसा क्यों होता है?

..ऐसा क्यों होता है?.. इस प्रश्न का जवाब देना बहुत कठिन है!…लेकिन ईश्वर भक्ति करने के बावजूद इच्छित फल की प्राप्ति न होने पर कुछ लोग ईश्वर को मानना ही छोड़ देते है…नास्तिक बन जाते है और कहतें है…ईश्वर जैसा कुछ है ही नहीं!…इस सोच वाले लोग प्रथम प्रकार के लोग है! तो कुछ लोग समझतें है कि उनकी भक्ति में खोट होने की वजह से वे ईश्वर को प्रसन्न नहीं कर पाए..वे यही सोच कर मानसिक तौर पर दु:ख का अनुभव करतें है! इस सोच वाले द्वितीय प्रकार के लोग है! ..लेकिन कुछ लोग ये समझतें है कि भाग्य का प्रभाव मनुष्य जीवन पर सबसे बढ़ कर होता है!..ईश्वर भक्ति अगर कुछ देती है तो आत्मीय शांति देती है, जीवन जीने का बल देती है और जीवन में संघर्ष के लिए शक्ति प्रदान करती है! अपने कर्तव्य पर ध्यान देना ही मनुष्य की प्राथमिकता होनी चाहिए..फल का मिलना न मिलना भाग्य पर छोड़ देना चाहिए!इस सोच वाले लोग तृतीय प्रकार के है! …इस प्रकार से तीन प्रकार की मानसिकता लिए हुए लोग हमारे समाज में देखे जा सकते है!…तीसरी प्रकार की मानसिकता वाले ही श्रेष्ठ समझे जाएंगे जो अपने कर्तव्य के प्रति जागृत रहकर, फल की आशा भाग्य पर छोड़ देते है!…ऐसे लोग जीवन में दु:ख के अनुभव से बचे रहतें है!..क्यों कि कर्तव्य को भली भाति निभाने के बावजूद इच्छित फल की प्राप्ति न होने में…वे अपने आपको दोषी नहीं मानतें!

..एक उदाहरण मेरी एक रिश्तेदार मौसी का है, जो मैं यहाँ देना चाहूंगी!..ये मौसी मुंबई में दादर स्थित सिद्धि विनायक मद्दिर..जो बहुत ही प्रसिद्द है और जागृत माना जाता है… की बिलकुल साथ वाली सोसाइटी में रहती थी! बहुत पुरानी बात है.. मौसाजी फिल्म टेक्नीशियन थे और प्रसिद्द अभिनेता देव आनंद की बहुत सी फिल्मों में फोटोग्राफी का करिश्मा दिखा चुके थे!…मौसी का परिवार सुखी परिवार था!..मौसाजी ने उस समय खंडाला में एक प्लॉट भी खरीदा था!..कमी थी तो संतान की!…ऐसे में मौसी सिद्धि विनायक मंदिर में हर रोज जा कर पूजा पाठ करती रही और व्रत इत्यादि भी करती रही..लेकिन संतान प्राप्ति नहीं हुई!..एक दिन मौसाजी की देव आनंद साहब के साथ अनबन हो गई और वे उनकी फिल्मों से दूर कर दिए गए!…और एक दिन पीलिया ( जौंडिस) के चपेट में आ गए और उनकी मृत्यु हो गई!…लेकिन मेरी मौसी के मन में ये विचार नहीं आया कि ‘ मैं श्री सिद्धि विनायक भगवान की इतनी भक्ति करती हूँ तो…मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?’..वह पूर्ववत ही ईश्वर भक्ति में लिप्त रही और बाद में खंडाला चली गई!वहाँ एक छोटासा मकान बना कर अकेली रही!एक गरीब रिश्तेदार के बेटे को अपने पास रखा…पढाया-लिखाया, उसने इंजीनियरिग की शिक्षा प्राप्त की…लेकिन अच्छी नौकरी मिलने पर मौसी को छोड़ कर अपने माता-पिता और भाइयों के पास चला गया!…मौसी फिर अकेली हो गई! उसका कहना था कि उसने एक बच्चे की सहायता कर के अपना कर्तव्य निभाया..ईश्वर भक्ति से तो उसे दु:ख झेलने की शक्ति मिली!…भाग्य तो सभी का अपना अपना होता है!..इस पर किसीका बस चलता नहीं है! …और मौसी जब भी समय मिला, मुबई जा कर सिद्धि विनायक के दर्शन भी करती रही!…मौसी का जीवन वृत्तांत किताना प्रेरक है!…ईश्वर भक्ति अपने मन को सुद्रढ़ बनाने के लिए कीजिए…मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए कभी नहीं!

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